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नारी सशक्तिकरण में मील का पत्थर साबित हुई है मैरी कॉम

              मुक्केबाज मैरी कॉम ने छठवीं बार विश्व चैंपियन बन कर इतिहास रच दिया .एक दुबली पतली गरीब घर की लड़की ने जिस तरह से उपलब्धियों के आसमान को छुआ है वह पूरी नारी जाति के लिए मिसाल है.ज्यादातर महिलाएं अपनी कमजोरी के लिए अपने परिवार, किस्मत और खुद महिला होने को जिम्मेदार मानती है. उन्हें लगता है कि उन्हें सपने देखने का हक़ नहीं है.वे महिला है उनका कोई साथ नहीं देगा, घर परिवार की जिम्मेदारी के साथ वे कभी अपने सपने पूरे नहीं कर सकती है. मेरी कॉम खेतो पर काम करती थी .कठिन परिस्थितयो से जूझती मेरीकॉम ने खुद अपना मुकाम हासिल किया है.उनके मुक्के में वो दम था कि अच्छे अच्छे उनके सामने टिक नहीं पाए. एक मजदूर परिवार में जन्म लेने वाली लड़की के लिए शिखर तक सफर आसान नहीं था . पग पग पर चुनौतियां और हौसलों को तोड़ देने वाली बाधाएं रास्ते में मिली. मैरी कॉम के अभिभावकों के पास एक मिट्टी की झोंपड़ी थी. उन्हें भी बचपन खेतों में मजदूर के तौर पर काम करना पड़ा. ये वो दौर था जब उनके पास सपनों की उडाऩ के लिए पंख बेशक नहीं थे लेकिन इरादे जरूर मजबूत थे.भारत की जानी -मानी चैंपियन बॉक्सर मैरी कॉम ने इस मुश्किल सफर की हर बाधा को लांघकर दिखा दिया और ये उनके विलपॉवर की एक बहुत बड़ी मिसाल भी हैं. इसीलिए उन्हें लौह महिला भी कहा जाता है.  ज्यादातर महिलाएं शादी के बाद अपने कैरियर को छोड़ देती है. कई बार उनमे काफी प्रतिभा होती है लेकिन समय की गर्त में सब धूमिल हो जाती है. उन्हें लगता है कि परिवार और कैरियर दोनों एक साथ चलाना काफी मुश्किल है. मेरीकॉम ये मिथक को भी तोड दिया है.शादी और बच्चे पैदा होने के बाद भी वह  बॉक्सिंग रिंग में टिकी हुई है . उनके तीन बच्चे है.घर पर रहने के दौरान वे एकदम गृहणी और माँ वाले रूप में रहती है.अब वह मणिपुर पुलिस में सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (स्पोर्ट्स) हैं. उनका जीवन ये बताता है कि अगर दृढइच्छाशक्ति हो तो सारी राहें आसान हो जाती हैं. फिर वही होता है जो आप चाहते हैं.

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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