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राजधानी मे सरकारी स्वास्थ सेवाए दम तोड़ने कि कगार पर........

भोपाल। (सुलेखा सिंगोरिया) हमीदिया और एम्स कहने को गरीबो की मदद के लिए है लेकिन असल  मे जब ऐसा कुछ होता है तो इन अस्पताल वालों के पास बहुत से बहाने मिल जाते है अपनी जिम्मेदारियो से भागने के लिए। कुछ दिनो पहले करोद के शिवनगर निवासी दीपेश चौरसिया 19 अप्रैल को श्यामला हिल्स स्थित रीजनल साइंस सेंटर के पास रात 11 बजे बाइक के फिसलने से दीपेश बुरी तरह से जख्मी हो गया था। सिर मे चोट लगने से लगातार खून बह रहा था। आसपास के लोगो ने एंबुलेंस से उसे हमीदिया अस्पताल भेजा और परिजनो को भी हादसे की सूचना दी। हमीदिया की इमरजेंसी मे स्ट्रेचर पर ही उसे ऑक्सीज़न लगा दी गई। तब तक परिजन भी वहाँ पहुँच चुके थे। दीपेश के पिता ने ड्यूटी पर मौजूद जूनियर डॉक्टर से कहा- बेटे के सिर से लगातार खून बह रहा है। आप कुछ इलाज कीजिये, अगर खून यू ही बहता रहा तो मेरा बेटा मर जाएगा। इस पर डॉक्टर ने कहा जबाव दिया - यहाँ पर ऐसे ही इलाज होता है। ज़्यादा जल्दी है तो प्राइवेट हॉस्पिटल मे ले जाइए। लापरवाही का आलम यह था कि दीपेश को रात 2 बजे सिर मे टांके लग पाये तब कही खून का बहना बंद हुआ। डॉक्टर के व्यवहार और उनकी लापरवाही को देखते हुये पिता ने रात 3 बजे ही उसे प्राइवेट हॉस्पिटल मे भर्ती करना बेहतर समझा। अरेरा कॉलोनी मे स्थित एक प्राइवेट हॉस्पिटल मे भर्ती कराया। परिवार की स्थिति कमजोर होने के कारण पिता ने 5 दिन बाद बेटे को एम्स मे भर्ती करने का सोचा, वहाँ जब पहुंचे तो एम्स से जबाव मिला कि हमारे यहाँ 10 वेंटिलेटर है जो की फुल है यहा इलाज नहीं मिल पाएगा। अब सवाल यह उठता है कि 11 बजे के जख्मी दीपेश को 2 बजे सिर टांके डाले गए, इसी बीच मरीज के साथ अगर कुछ गलत होता है तो क्या इसकी ज़िम्मेदारी अस्पताल लेगी। इलाज के तमाम दावे करने वाले शहर के बड़े सरकारी अस्पतालो के ये हाल है जहां पर किसी अस्पताल मे वेंटिलेटर नहीं है तो काही डॉक्टर को मरीजो के परिवार से बार करने का लहजा नहीं मालूम, ऐसे मे मरीजो को राहत कैसे मिलेगी। यानि सिस्टम बीमार और लाचार है।

कुछ इस प्रकार अपनी लापरवाही कि दी सफाई........ 

हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एके श्रीवास्तव ने कहा- कंसल्टेंट डॉक्टर की लापरवाही है, अस्पताल को जूनियर्स के सुपुर्द नहीं करना चाहिए। मरीज के इलाज मे लापरवाही नही बर्दाश्त की जाएगी। मरीज के परिजनी को सुबह आकार हमसे बात करनी चाहिए थी।        एम्स, मेडिकल सुप्रीटेंडेट, मनीषा श्रीवास्तव बोली- आईसीयू मे 10 और इमरजेंसी चार बेड है। हेड इंजूरी के मरीज दूसरे अस्पताल से रिफर होकर आते है उन्हे बेड मिलने मे दिक्कत होती है, लेकिन हमारी भी कुछ मजबूरी है। ऐसे मे कई बार मरीजो को नहीं ले पाते हैं।

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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