चेन्नई।(विशेष प्रतिनिधि) भारत की गोमती मरिमुथु ने हाल ही मे दोहा मे हुये एशियन एथलेटिक्स चैपियनशिप मे 800 मीटर रेस मे गोल्ड जीता था। गोमती तमिलनाडु कि रहने वाली हैं। वे कहती है- जब से दोहा से वापस आई हूँ।लोग मुझे पहचान रहे हैं। किसी न किसी तरह से मेरी मदद करना चाहते हैं। लेकिन यह ऐसा पहले नहीं था, दरअसल 20 कि उम्र मे उन्होने प्रोफेशनल रनिंग शुरू की। 3 साल पहले जब गोमती का करिअर कुछ बनते दिख रहा था। तो पिता मरिमुथु और कोच गांधी का निधन हो गया। गोमती को ट्रेनिंग देने के लिए कोई नहीं बचा। उन्हे ग्रोइन इंजरी भी हो गई। जिससे 2 साल रनिंग से दूर रहना पड़ा। गोमती इस संघर्ष पर कहती है कि मेरे पिता मेरी ट्रेनिंग के पैसे बचाने के लिए कई बार भूखे रहते थे। कठिनाईया बहुत थी। लेकिन ज़िद थी कि मेडल लाना है। गोमती ने कहा कि - रनिंग मे करिअर बनाने या प्रोफेशनल लेवल पर रनिंग करने का कोई इरादा नहीं था। मैं बस यूं ही खेल-खेल मे दौड़ा करती थी। 20 साल कि उम्र मे मेरे कोच ने सलाह दी, कि मुझे अपने इस हुनर को और तराशना चाहिए। तब जाकर मैंने रनिंग कि ट्रेनिंग लेनी शुरू की। कोच के साथ साथ मेरे पिता ने भी खूब सपोर्ट किया। मेरे पिता भूखे रहते थे। तब पिता को देखकर मुझे बहुत बुरा लगता था। गाँव वाले भी कहते थे कि खेल छोड़ो और स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी लेकर परिवार कि मदद करो। इस बीच मुझे बैंगलुरु के आयकर विभाग मे नौकरी भी मिल गई। मेरे पिता नहीं चाहते थे कि मैं रनिंग छोड़ कर नौकरी करू। तभी उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी तो मुझे लगा कि अब खेल छोड़कर नौकरी पर ध्यान देना चाहिए। तब पिता ने कहा कि रनिंग ही तुम्हारा जुनून हैं। इसकी खातिर तुमने काफी समर्पण किया हैं। इसलिए अब इसे छोड़ना नहीं हैं। रनिंग गोल्ड जीतना। दुर्भाग्य से इस साल ही मेरे पिता और मेरे कोच का दिहान्त हो गया। मुझे ग्रोइन इंजरी कि वजह से 2 साल तक रनिंग से दूर रहना पड़ा। शायद वो दौर न होता, तो मेरा ये गोल्ड मेडल और पहले पिता और कोच के सामने आ गया होता। ऐसे दौर मे फ्रांसिस मैरी ने मेरी मदद की। फ्रांसिस अक्का (गोमती, फ्रांसिस को अक्का कह कर बुलाती हैं) फ्रांसिस अक्का से मैं 2011 मे मिली थी। वे उम्र मे मुझसे बड़ी थी और एक बच्चे कि माँ भी थी। अक्का ने एक साल के भीतर 2 इवेंट मे मुझे हराया। ये मेरी करिअर कि सबसे मुश्किल हार थी। रेस देखने आए लोग मेरी मज़ाक उठाते थे, कि मैं उम्र मे बड़ी महिला से हार गईं। ऐसा मज़ाक असहनीय था। ऐसे मे अक्का ही मेरा सहारा बनी। उन्होने सिर्फ मुझे ट्रेनिंग नहीं दी, बल्कि मानसिक रूप से भी हौसला दिलाया। जिस वक्त में टूटकर खेल छोड़ने का मन बना चुकी थी उस वक्त अक्का ने मुझे समझाया कि मैं रनिंग के लिए ही बनी हूँ। वो मेरा परिवार हैं। मेरे स्कूल ने भी मेरा सम्मान किया गया। मेरा अगला लक्ष्य वर्ल्ड चैपियनशिप करना हैं। फिर ओलिपिंक के लिए क्वालिफाइ करना हैं। टोक्यो मे 2020 मे देश का प्रीतिनिधित्व करना हैं और मेडल जीतना हैं।
पुरस्कार- गोल्ड जीनते के बाद गोमती को तमिलनाडू सरकार और अन्य सोर्स से पुरस्कार मिल चुके हैं।