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साइनेज कंपनियो कि मनमानी और नगर निगम कि लापरवाही

भोपाल।(सुलेखा सिंगोरिया) राजधानी मे नगर निगम ने शहर के प्रमुख 12 स्थानो पर सड़कों के डिवाइडर पर लगे बिजली पोल पर साइनेज के लिए 1 अक्टूबर 2013 को टेंडर जारी किए थे। टेंडर 10 अक्टूबर को खोले गए थे और ठेका भोपाल की एड क्रिएशन को मिला था। टेंडर शर्तो के मुताबिक साइनेज के लिए अवधि तीन साल यानी 2016 तक थी। इसकी सालाना राशि 5,20,839 (प्रति वर्गफीट के हिसाब से) थी। नगर निगम के नियमो अनुसार 2016 मे अवधि खत्म होने के बाद साइनेज के लिए दोबारा से टेंडर जारी करना थे, निगम आयुक्त ने टेंडर के बाद प्रस्ताव एमआईएसी के पास भेजा था। लेकिन तत्कालीन महापौर कृष्णा गौर और एमआईसी ने एग्रीमंट मे बदलाव करते हुए प्रस्ताव को पाँच साल की अवधि के साथ मंजूरी दे दी, जबकि नियमानुसार टेंडर नए सिरे से जारी होना थे। लेकिन एमआईसी की मंजूरी के बाद बाकी सभी एड एजेंसिया दो साल के लिए दौड़ से बाहर हो गईं हैं।  इस मनमानी का नतीजा यह हुआ की तीन साल बाद भी अगले दो साल के लिए नगर निगम को सालाना 5.20 लाख रूपय की कमाई होगी। जबकि यही नगर निगम नियमो अनुसार चलते तो उसका राजस्व कई गुना बढ़ सकता था। वही अफसरो की लापरवाही के चलते मॉनिटरिंग नहीं करने से कंपनिया अपनी मनमानी कर रही है। शर्तो अनुसार साइनेज का साइज 2x3 तय है, लेकिन एड क्रिएशन ने 4x3 साइज वाले बोर्ड लगा रखे हैं। इतना ही नहीं अनुबंध शर्तो के मुताबिक शहर के चार प्रमुख सड़कों पर साइनेज बोर्ड एक पोल छोड़कर लगना थे, लेकिन यहा तो सभी पोल पर साइनेज बोर्ड टांग दिये गए हैं। नगर निगम परिषद के 2007 के फैसले के अनुसार निगम को साइनेज से होने वाली आय पर कंपनियो से 6 प्रतिशत साइनेज कर वसूनला चाहिए, जो अफसरो की लापरवाही के कारण वसूला ही नहीं जा रहा हैं।

 

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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