भोपाल। मंगलवार को गांधी भवन मे जन संगठनो के बीच बाढ़ के डूबे क्षेत्रो की स्थिति को बताते हुए, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेघा पाटकर ने कहा कि अलीराजपुर, बड़वानी समेत पूरे निमाड मे भूकंप जैसे झटको जैसी आवाजे सुनाई दे रही हैं। 178 गाँव डूब गए हैं 35 हजार से ज़्यादा लोगो के पास जीवन व्यापन के लिए कुछ नहीं बचा हैं, सिर पे संकट बना हुआ हैं। कई क्षेत्रो की हालत बद से बदतर हो गई हैं। लोगो के खाने को नहीं हैं। गुजरात के 320 गाँव टीपी मात्र मे 88 विस्थापित स्थलो मे बुनियादी सुविधाओ का प्रबंध नहीं किया गया। नतीजे में बड़वानी, अलीराजपुर, धार आदि क्षेत्र की स्थिति बेकार हो गई हैं। बड़ी संख्या धार्मिक स्थल डूब गए तो कई गांव के निशान ही नहीं रहे। बच्चों की पढ़ाई बंद तो चिकित्सा व्यवस्थाएं कमजोर है। पानी में मगरमच्छों की भरमार के चलते बड़ी संख्या में सैकड़ों आदिवासी पहाड़ पर जमा है। उन्होंने कहा कि जिन विस्थापितों को प्लाट दिए तो अब तक रजिस्ट्री नहीं की। ऐसे में जमीन और आजीविका के बिना पुनर्वास का कोई अर्थ नहीं हैं। निमाड़ को कपास, केला और मिर्ची के लिए जाना जाता था। लेकिन साजिश के तहत एग्रो इकॉनामी को ठप कर दिया गया। अधिकारियों और दलालों के गठजोड़ के कारण पुनर्वास का काम सीधे तौर पर प्रभावित हुआ है। ये बहुत ही दुखद बात है। मेघा पाटकर ने आरोप लगाते कहा कि सरदार सरोवर बांध क्षेत्र मे विस्थापन के नाम पर मज़ाक हुआ हैं। पिछली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मे विस्थापित गनवो कि संख्या का झूठा शपर्थ पत्र पेश किया। साथ ही कहा कि जन जागरण के लिए नवंबर मे भोपाल मे बड़ा सम्मेलन करने की जरूरत की बात कही। मेघा ने जन संगठनों से आव्हान किया कि जल नियोजन को मुद्दा बनाकर वे उठ खड़े हो ताकि इस विषय को संवेदनशील मानते हुए राज्य एवं केंद्र सरकारें अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह करें। उन्होंने बताया कि 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई है। हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय से सारे मुद्दों पर न्याय मिलेगा।
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