भोपाल। स्वास्थ्य विभाग दिल्ली के तर्क पर शहर मे दो महीने पहले खोली गई संजीवनी क्लीनिक येक हालात कुछ यूं हैं कि न तो पर्याप्त दवाइया हैं और कि कोई उपकरण, आलम कुछ ऐसा हैं कि मरीजो के लिए पीने को पानी तक नहीं मिलता हैं। ऐसे हालात अगर क्लीनिलो के होंगे तो मरीज क्या करेगा, कहाँ जाएगा।
दरअसल, स्वास्थ्य विभाग दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक की तर्ज पर भोपाल में भी तीन संजीवनी क्लीनिक खोले हुये हैं। स्वास्थ्य विभाग इन क्लीनिक में 120 तरह की दवाओ और 63 तरह की जांच की सुविधा का दावा कर रहा है। वही सच्चाई इसके विपरीत हैं। क्लीनिक मे रोजमारा के लिए बीमारियो कि दवाइया तक मौजूद नहीं हैं, जैसे- गोलिया- प्राइमाक्विन, अर्टीसुनेट, मेथयलेर्गोमेट्रिने मलेट, मेथिदोपा, मिसोप्रोस्टोल, ऑर्निडाजोल,विटामिन बी2, इंजेक्शन - सिप्रोफ्लोक्सासिन, मेग्नीशियम सल्फेट, पेरासीटामॉल, सुक्रोस।विटामिन के1, सीरप - सिफालेक्सिन, डेक्सक्लोरफेनीरामिन मेलीट। संजीवनी क्लीनिक मे 58 प्रकार की दवाओ और 41 उपकरणों की कमी बनी हुई है। जबकि क्लीनिक में दवाइयो समेत उपकरणो की व्यवस्था सीएमएचओ की जिम्मेदारी है। दवाइयो की सप्लाई सीएमएचओ कार्यालय से की जा रही है। छोटे उपकरण आदि की खरीदी के लिए प्रत्येक संजीवनी के लिए अलग से एक लाख रुपए का फंड दिया गया है।
डॉ. पंकज शुक्ला, डिप्टी डायरेक्टर, एनएचएम – संजीवनी पर 120 प्रकार कि दवाए और 64 प्रकार के उपकरण जरूरी हैं। दवाइयो कि ज़िम्मेदारी स्थानीय स्तर पर सीएमएचओ को करनी हैं। अगर पूरी दवाए और उपकरण नहीं हैं तो हम संबन्धित से बात करेंगे।