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भोपाल। आप इसे विलुप्त शौचालय घोटाला कह सकते हैं। मध्यप्रदेश मे साढ़े चार लाख स्वच्छ शौ चालय जो केवल कागजो पर बने थे, न केवल विलुप्त हो गए हैं बल्कि अपने साथ उसके निर्माण पर खर्च होने वाले 540 करोड़ रूपय भी खुर्द-वुर्द हो गए हैं। इन लाखो तथाकथित शौचालयों का कही अस्तित्व ही नहीं हैं। जबकि प्रशासन के पास जीपीएस लगे प्रत्येक शौचालय के फोटोग्राफ हैं, लेकिन सरकार ने इन पर खर्च किए गए एक-एक पैसो को वसूलने का तय कर लिया हैं। यह घपला गुना जिले मे सन 2017 मे हुये उस घोटाले की याद ताजा करता हैं, जिसमे 42 हजार शौचालयों के लोहे के दरवाजे निर्धारित मानक से 10 किलो ग्राम कम वजन के बनाए गए, और इस तरह सरकार को करोड़ो का चूना लगाया गया था। बताया जा रहा हैं कि विलुप्त शौचालय दरअसल, जमीन पर बनाए ही नहीं गए थे, बल्कि उनका वजूद कागजो पर ही था। यह सारे कथित शौचालय 2012 से अक्टूबर 2018 तक की अवधि मे ही बनाए गए। अधिकारियों का यह मानना हैं कि स्वच्छ शौचालय के प्रमाण के तौर पर जो फोटोग्राफ प्रस्तुत किए थे, उन्हे किसी पडोसी के शौचालय के सामने खींचा गया था। इसी तरह बैतूल जिले की लक्कड़जाम पंचायत के कुछ ग्रामीणो ने यह शिकायत की, कि जिन चार ग्रामीणो के नाम शौचालय बनाया गया हैं, उनका अस्तित्व ही नहीं हैं। जब उक्त मामले कि जांच की गई तो शिकायत सही पाई गईं, उसके बाद संबंधितों से 7 लाख की वसूली की गई, इस घोटाले के बाद पंचायत एव ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सर्वेक्षण करा कर यह पता लगाया कि पूरे प्रदेश मे साढ़े चार लाख शौचालय सिर्फ कागज पर ही बने हैं। ओर उनके निर्माण पर लगभग 540 करोड़ रुपए खर्च हुये हैं। बता दे कि सन 2011 मे भी ऐसे ही सर्वेक्षण किया गया था, तब यह रहस्योद्घाटन हुआ था, कि गरीबी रेखा से ऊपर वाले 62 लाख परिवार बिना शौचालय के हैं। 2 अक्तूबर 2008 को ऐसे शौचालयों का निर्माण पूरा होना दर्शाया गया। जहां शौचालय वास्तव मे बने हैं, या नहीं इसकी पड़ताल के लिए भौतिक सत्यापन हेतु 21 हजार वॉलियंटरों को लगाया गया था। इसी पड़ताल मे यह खुलासा हुआ कि साढ़े चार लाख शौचालय जगह पर हैं ही नहीं। यह कहना हैं स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) मध्यप्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर अजीत तिवारी का। शौचालत घपला प्रकार मे आने के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले मे मध्यप्रदेश स्थित स्वच्छयता मिशन से जवाब मांगा हैं।
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