भोपाल। मध्यप्रदेश के सियासी घटनाक्रम से यह सनातन सवाल फिर उठा है कि आखिर खरीद-फरोख्त सिर्फ कॉंग्रेस पार्टी के विधायको की या कॉंग्रेस कों समर्थन देने वाली समाजवादी प्रकृति की पार्टियो के विधायको की ही क्यो होती हैं? अगर कॉंग्रेस की बात पर यकीन करें तो कर्नाटक मे उसके विधायक 50-50 या सौ-सौ करोड़ रुपए मे बिक गए। गोवा मे भी भाजपा ने कॉंग्रेस के विधायको को खरीद लिया था। तेलंगाना मे भी पार्टी का कहना हैं कि उसके कुछ विधायको की खरीद-फरोख्त हुई हैं। अब मध्य प्रदेश मे भी कॉग्रेसी विधायको की खरीद-फरोख्त का प्रयास हो रहा हैं। कॉंग्रेस, टीडीपी, समाजवादी पार्टी और इलेनों आदि कई पार्टियो के राज्यसभा सांसदो के भी खरीद-फरोख्त के आरोप पिछले दिनो लगे थे। सवाल हैं कि भाजपा के विधायक क्यो नहीं बिकते? मध्यप्रदेश मे कॉंग्रेस की सरकार 15 महीने से चल रही हैं तो उसने भाजपा के विधायक खरीदकर बहुमत क्यो नहीं बना लिया? यह नहीं कहा जा सकता हैं कि भाजपा आज केंद्र की सत्ता मे हैं और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की वजह से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही कि भाजपा के विधायको की खरीद-फरोख्त करे। जब मोदी और शाह की कमान नहीं थी और केंद्र मे दस साल तक कॉंग्रेस की सरकार थी, तब भी एकाध छोटे-मोटे अपवादो को छोड़ दे तो इसकी मिसाल नहीं हैं कि भाजपा ने आरोप लगाया हो कि उसके विधायको की खरीद-फरोख्त हो रही हैं। इस आधार पर क्या यह माना जा सकता हैं कि भाजपा के नेता विचारधारा के प्रति ज्यादा प्रतिबध्द होते हैं और संगठन से ज्यादा बंधे होते हैं? कॉंग्रेस को इस बारे मे जरूर सोचना चाहिए। वैसे विधानसभा चुनाव मे जिन नारो के दम पर कॉंग्रेस और भाजपा ने जनता मे पैठ बनाकर वोट हासिल करने का प्रयास किया गया था, उन्ही नारो की अदला-बदली मप्र मे हो रही हैं। कॉंग्रेस ने “सबका साथ सबका विकास” को अपनाकर हर विधायक को साथ रखने और उनके विकास के लिए सरकार के मुखिया और मंत्री वादा पूरा करने मे जुट गए हैं तो वही भाजपा ने कॉंग्रेस का नारा “वक्त हैं बदलाव का” को थाम लिया हैं। भाजपा प्रदेश मे सरकार के बदलाव करने मे जुटी हैं।
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