नई दिल्ली। 2004 मे किसानो को मुआवजा मामले मे उप्र की पूर्व अतिरिक्त जिला जज साधना चौधरी को बर्खास्त किए जाने वाले आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया हैं।
सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस बीआर गवई और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि न्यायपालिका का सिद्धांत है कि जज को मुकदमे के नतीजे के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। जजों पर लगाए जाने वाले आरोपो को लेकर चिंता जताते हुये चीफ जस्टिस ने कहा- हाईकोर्ट सुनिश्चित करे कि ईमानदार जजों पर हमले न हों। देश में ऐसे अनगिनत लोग हैं, जो सस्ती लोकप्रियता के लिए न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते। ऐसे लोगों से बार के असंतुष्ट सदस्य भी अकसर हाथ मिला लेते हैं। जज उनके लिए आसान टारगेट होते हैं।
जज साधना चौधरी पर यह था आरोप: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन अधिग्रहण में अनियमितता की जांच के लिए कमेटी बनाई थी। कमेटी ने 19 सितंबर 2004 को जज साधना चौधरी के खिलाफ एक रिपोर्ट दी थी। इसमें आरोप था कि उन्होंने दो मामलों में किसानों को सरकार द्वारा तय मुआवजे से अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया। वे ईमानदारी के साथ न्यायिक कार्य करने में विफल रहीं। इस आधार पर उन्हें 17 जनवरी 2006 को बर्खास्त कर दिया गया। इसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।