भोपाल (अभिलाषा मिश्रा)
रेमडेसिविर इंजेक्शन कि कालाबाजारी और खाध्य पदार्थो में मिलावट करने वालों(मिलवट्खोरी)के आरोप में प्रदेश मे अब तक 37 लोगो के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (रासुका)की कारवाई कि गई है, लेकिन इनमे कई मामले ऐसे है जिन पर कलेक्टरों ने नियमों और प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। और इसी का लाभ लेकर आरोपी हाईकोर्ट की शरण ले रहे है दरअसल, रासुका में कारवाई करने के लिए संबंधित जिले के पुलिस अधीक्षक प्रस्ताव कलेक्टर को भेजते हैं। कलेक्टर आदेश जारी कर गृह विभाग को अनुमोदन के लिए भेजते है। आदेश का अनुमोदन उसके जारी होने के 12 दिन में करवाना होता है। सरकार को यह आदेश 3 सप्ताह में एडवाइजरी बोर्ड से पास करना होता है। यदि यह प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी, तो कलेक्टर का रसुका संबंधित आदेश स्वतः शून्य हो जाता है। हाल ही में रेमडेसिविर की कालाबाजारी करते पकड़े गए कुछ आरोपियों के खिलाफ भी रासुका की कारवाई कर दी है। यदि कोई व्यक्ति पहले से ही जेल में है, तो उस पर रासुका नहीं लग सकती है। ग्वालियर के एक ऐसे ही आरोपी की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रासुका का आदेश निरस्त करने की मांग की गई है। यह रासुका लगाने के आदेश जारी करने के पहले से जेल में है। इधर अक्टूबर-नवंबर मई त्योहारों के दोरान खाध्य पदार्थो और तेल मे मिलावट करने वालों पर बड़े पैमाने पर रासुका लगाई गई थी। उनमे से एक दर्जन मामले ग्वालियर, मुरैना और भिंड के थे। इन मामलो मे हाईकोर्ट से इसी आधार पर राहत मिल गई है,राज्य सरकार से आदेश जारी करने के 12 दिन के अंदर अनुमोदन नहीं लिया था। रेमडेसीविर केस मे अब तक कई जिलो मे कितनो पर रासुका लगी है :- इंदौर-9, भोपाल-2, उज्जैन-9, ग्वालियर-4, जबलपुर-4, शहडोल-4,धार-2, मंदसोर-1, छिंदवाड़ा-1, रतलाम-1।
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