भोपाल
जमीयत उलेमा –ए हिंद के राष्ट्रीय उपधायक्ष एवं मुफ़्ती –ए- आजम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अब्दुल रज़्ज़ाक़ खान को राजकीय सम्मान के साथ गुरुवार को विदाई दी गई।उनकी नमाज-ए-जनाजा इकबाल मैदान के बदले तरजुमे वाली मस्जिद मै अदा हुई। उन्हे बड़ा बाग के नजदीक स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्देखाक किया है। मुफ़्ती साहब के नाम से लोकप्रिय 96 वर्षीय अब्दुल रज़्ज़ाक़ साहब ने बुधवार देर रात को फानी दुनियकों अलविदा खा था। उनके बेटे ने भी सोशल मीडिया पर अपील की थी, कि मुफ़्ती साहब के आखरी सफर में शामिल होने लोग न आएं। लेकिन उंसके बाद भी कई लोग तरजुमे वाली मस्जिद पहुंचना चाहते थे। करीब 2 बजे उनके पार्थिव शरीर पुलिस काफिले के साथ कब्रिस्तान लाया गया। राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी। इस दौरान कुछ पुलिसकर्मी पीपीई किट में थे। दीन और आधुनिक शिक्षा देने कि खातिर उन्होने वर्ष 1958 में तरजुमे वाली मस्जिद मै जामिया इस्लामी मदरसा खोला। इसे मजहबी तालीम का शिक्षा केंद्र बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। यहा 1200 बच्चे हर साल तालीम हासिल करते है। यहा अब कम्प्युटर कोर्स भी कराया जाता है। इसके अलावा तुमड़ा फंदा में दारुल उलूम हुसैनिया मदरसा भी खोला। साथ एक गौशाला का भी निर्माण कराया है। इधर पुलिस ने देर रात ही अपील काना शुरू कर दी थी कि कोरोना के चलते किसी को भी नमाज- ए-जनाजा में शामिल होने कि अनुमति नहीं है और फिर पुलिस ने इकबाल मैदान,रेटघाट से पूरे पुराने भोपाल को बंद कर दिए थे।बेरिकेड्स पर आरएएफ,एसटीएफ,एसएएफ के जवान तैनात थे। गौहर महल के पीछे से लोगों को गाड़ियो से रास्ता तलाशना पड़ा। इसमे लोग दोपहर तक परेशान होते रहे। और इधर हमीदिया अस्पताल जाने वाले मरीजों को भी परेशान होना पड़ा।
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