तुम्हारे दर्द का कैसे हिसाब करूं? तुम्हारे ऊपर जो कहर बरपा उसको कैसे जबान दूं?
मैं शब्दहीन हूं नि:शब्द और बेजुबान हूं मेरी गिरजा बहन गुनाहगारों को सजा न दे सका मैं तुम्हारा गुनहगार हूं।
कायल है कायनात तुम्हारी बहादुरी का तुम्हारे साहस और मर्दानगी का कि उस असहनीय पीड़ा को अमृत समझकर पी लिया।
सोचता हूं भी तो रूह कांप जाती है आंखों के सामने अंधेरा छा जाती है तुम्हारी असहनीय वेदना खून भी जमा जाती है।
चीख तुम्हारी दबा दी गई वादी के जिहादी नारों में अस्तित्व तुम्हारी मिटा दी गई वादी के कब्रगाहों में दबा दी गई आवाज तुम्हारी सरकार के सरकारी वादों में।
बहन हम शर्मिंदा हैं कि तुम्हें बचा न सके तुम्हारी अस्मत को तुम्हारी जीवन को जिहादी दरिंदों के पंजों से।
बेशक हम शर्मिंदा हैं पर अभी जमीर जिंदा है। तुम्हारे रूह की आह और आंसू मेरे लहू काआज भी हिस्सा है।
कभी नहीं भूलेंगे न भूलें हैं आज भी पूरा हिसाब लेंगे बहना तुम्हारे एक एक कतरे खून का और बेहिसाब आंसू के।
लानत है उन भाईयों को जो बहन की वेदना का हिसाब न कर सका, लानत है सरकार को लानत संविधान को, जो तुम्हें न्याय न दे सका लानत है ऐसे विधान को।
बहन तुम मेरी नहीं क्योंकि तुम मर सकती नहीं तुम हमारे लिए वंदनीय थी हमेशा वंदनीय रहेंगी हम रहें या न रहें ज्वाला प्रतिरोध की हमेशा जलती रहेंगी।
फातिमा अनवर
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