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शत्रु अनेक.........

 

शत्रु तो आज 
यूं ही बन ही जाते हैं
सच्चे दोस्त नहींं!
शत्रु भी...
मित्र बन छलते आज
घूमते- फिरते 
हर गली चौबारे में
शेर की खाल में भेड़िए!
मित्रता करो.. 
परंतु ! सोच समझ कर
छोड़े कभी ना जो साथ!
स्थिर स्तंभ सा खड़ा रहे जो
हर पल तुम्हारे साथ!
खुशियाँ हो अपार..
या हो कोई अवसाद !
छतरी बन करे छाया
 हो धूप दुखों की 
या अश्रुओं की 
हो बरसात!
दिया बन ..
कर दे उजियारा
जब हो अमावस की 
काली- अंधियारी रात!
हो दुख की कोई घड़ी  
या खुशियों की हो लड़ी
कभी ना छोड़े 
जो साथ!
अटल पर्वत बन 
संग रहे जो 
कभी ना छोड़े हाथ!
शत्रु हों चाहे अनेक
सौ पर भारी बस..
 मित्र एक!!
# निरुपमा सिंह #

 

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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