भोपाल ( सैफुद्दीन सैफी)
कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, कि इसके होने मात्र कि सूचना से मरीज की आधी जान सुन कर ही निकल जाती है। और आधी जान इसके इलाज के नाम पर वो निकाल लेते है,जिनको हमने तथाकथित तौर पर living God यानि धरती का भगवान मानने की भूल करली है। जी हाँ इलाज के नाम पर जान से लेकर जनता का माल तक लूटने वाले डॉक्टर्स का एक रूप हम करोना काल मे भी देख चुके है।
अब बात करते है उस खबर की जो इन दिनो चर्चा का विषय बनी हुई है, वो है जवाहरलाल कैंसर
हॉस्पिटल की जिसे एक जाने माने संपादक रहे मदन मोहन जोशी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल मे स्थापित किया था।
इस हॉस्पिटल को बनाने के लिए ईदगाह स्थित भूमि भी तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आवंटित करवायी थी। उसके बाद
उन्ही के शासनकाल मे ये क़ैसर हॉस्पिटल दिल खोलकर सरकारी रुपैया हड़पने का एक परिवार विशेष का निजी जागीर बन गया जो आज तक बना हुआ है। लगातार 18 साल से प्रदेश मे शिवराज का राज है, मगर उनके राज मे भी इस क़ैसर हॉस्पिटल मे इलाज के नाम पर सरकारी लूट का खुला खेल चालू है। जबकि देश के प्रधान मंत्री और प्रदेश के मुखिया शिवराज भ्रष्टाचार के मामले मे जीरो टोलरेंस की बात करते है। अब तक राज्य सरकारे इस जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल को इतनी खेरात दे चुकी है की उस रकम से राजधानी मे एक नही दो दो सरकारी हॉस्पिटल वो भी क़ैसर के आधुनिक सुविधा से लैस होकर बन सकते थे मगर जब राजनेता खुले तौर पर किसी पर मेहरबान हो तो फिर मजाल क्या की कोई इस् तरफ नजर तो उठा सके।
मगर हर बात की एक सीमा होती है और जवाहर लाल नेहरू क़ैसर हॉस्पिटल परिवार एंड कंपनी का भी बुरा वक़्त कल से शुरू
हो गया जब इस हॉस्पिटल के पारिवारिक कर्ताधर्ताओ ने देश के पहले सीडीएस स्वर्गीय जनरल रावत के भाई को भी दवाओ के खरीदी के नाम पर अंधेरे मै रखकर करोड़ो के चेक साइन करवा लिए इस मामले मे ईओडबल्यू मे बाकायदा शिकायत की गई है जिस पर
ईओडबल्यू ने मामला कायम कर जांच शुरू करदी है। उम्मीद की जानी चाहिए की जांच मे जवाहर लाल नेहरू क़ैसर हॉस्पिटल संचालन मे जिन कर्ताधर्ताओ को भ्रष्टाचार का क़ैसर हुआ है उसका उचित इलाज ईओडबल्यू के ईमानदार अफसर अच्छे से पता लगाने मे सफल होंगे।