इस क्षणभंगुर जीवन में,
गुजरता लंबा सफर।
थका हुआ,हताश हुआ
फिर भी कटता सफर।
किसी की आस, पर किसी की चाह पर
बस गुजरता सफर।
हैरान हूं मैं देख कर,
क्यूं कट रहा है यह सफर?
तकिए पर रखकर सर,
आंखों के करीने से टपका एक आंसू,
उधेड़बुन में गुमनाम हुआ यह सफर।
वेदना जो दिखाई तो पड़ती रही,
मगर मलाल ना कर सकी
बस! यू चल रहा सफर।
हजार सवालों का ढूंढती जवाब,
यहां ,भटकती सी जिंदगी
भटकाव बनकर रह गया सफर।
कुछ ख्वाहिश जो तमन्ना बन कर रह गई,
अधपकी यादों की तरह,
और,
उन्हीं यादों का हमसफर बन गया सफर।
कहानी लिखना तो चाहा,
मगर लिखने को कुछ रहा ही नहीं
कोरा अन लिखा कागज,
अवयक्त , बन गया सफर।
सोचा था मात दूंगी जिंदगी को,
कहां पता था?
मेरी हार ही बन जाएगी सफर।
इस क्षणभंगुर जीवन में,
गुजरता लंबा सफर।
अमृता अग्रवाल
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