भरोसा चैन उम्मीद
के साथ -साथ
थोड़ा अंतर्मन की पीड़ा लिये
ठहर जाया करती
मन में उमड़ते भाव को
कभी नहीं दर्शाती
कभी खुद मैं डूब
जाया करती
कभी बालों की लटों को
आगे पीछे किया करती
कभी बिंदी की रंग
बदल लिया करती
दर्पण जो है वो हुबहू
अभिनय करता है
मुझ जैसा ही
सब कुछ जानते हुए भी उसने
कभी मेरी अंतर पीड़ा ,वेदनाओं
खामोशी, को उजागर नहीं किया।
देह पर पड़े मेरे जख्मों के
निशान को कभी नहीं दर्शाया।
दुख की व्यंजना सा
संबल बन रहा हदम।
सोनू सिंघल
अजमेर
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