नन्हीं कोशिश '
नन्ही बिटिया के नन्हे हाथ
कोशिश करती बार-बार
बहती नदिया भारी
क्या करुं ....कैसे करूं
कागज की नाव हमारी
नन्हीं परी की नन्हीं कोशिश
नन्हे पांव जमाये
गीली रेत मुष्टि में भरती
रेत फिसल ना जाये
पुरजोर कोशिश करती
सपनों की मानिंद बालू
नन्हें हाथों से ज्यूं ज्यूं सरकती
फिर सहेजती ,समेटती
झटपट नन्हें हाथों में
कुछ सीपियाँ बंद ,नन्हें शंख
बटोरती, खिलखिलाती
सुनहरी धूप सी वो
फिर फुदक - फुदक कर
अठखेलियाँ करती
जलपरी सी दिखती
आसमानी पानी में
यही तो है ..
नन्हीं सी बिटिया का
नन्हें सा बचपन,
प्यारा बचपन
न्यारा बचपन,
मनमोहक बचपन
आज मोहवश
अति व्याकुल हूं
सोचूं यही बार-बार
अनेक बार
कैसे और कब तक
क्या कर पायेगी अपनी सुरक्षा
हर पल, हर दिन, हर बार
अपने इर्द-गिर्द इन रेंगते
विषैले, पनियाले कीड़ों से
जो हमला बोलने को हैं आतुर
हर पल ,हर क्षण हर घड़ी
कब तलक सुरक्षा कर पायेगी
मेरी सुकोमल,
नन्हीं, बिटिया रानी !
*निरुपमा सिंह*