नई दिल्ली : दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में एक 19 साल की युवती से सामूहिक दुष्कर्म और उसकी बेरहमी से हत्या करने वाले तीन आरोपियों को मौत की सज़ा सुनाई थी | दिल्ली हाई कोर्ट ने 26 अगस्त 2014 को मौत की सज़ा की पुष्टि करते हुए कहा था कि दोषी शिकारी जानवर की तरह थे जो सड़कों पर घूम रहे थे और शिकार की तलाश में थे | दोषियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी कोर्ट ने 6 अप्रैल को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था | सोमवार को फैसला सुनाते हुए जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर आरोपियों ने इस भयभीत वारदात को अंजाम दिया होगा और वह बिना सज़ा के छूट जाएंगे तो समाज में गुस्सा पनपेगा और पीड़िता के परिजनों को दुख होगा लेकिन कानून के हिसाब से कोर्ट सिर्फ शक के आधार पर किसी को दोषी नही ठहरा सकता | यह फैसला भावनाओं में बहकर या बाहरी नैतिक दबाव में आकर नही करना चाहिए | आरोपियों के डीएनए टेस्ट, वैज्ञानिक सबूत, वारदात में इस्तेमाल कार, आरोपियों की पहचान उनके सैंपल,कॉल डिटेल रिकॉर्ड और अन्य सबूतों का आरोपियों से संबंध साबित नही हो पाया इस कारण मौत की सज़ा पाए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया गया हैं |
मृतक लड़की के माता पिता ने निराशा जताते हुए कहा कि हम लोग ग़रीब हैं, इसलिए कोर्ट ने हमारे खिलाफ फैसला किया हैं | अगर यही वारदात किसी रसूखदार व्यक्ति या राजनेता के साथ घटती तो क्या ऐसा होता, आरोपियों को खुला घूमने दिया जाता ? आरोपी हमे कोर्ट में काटने की धमकी देते रहे फिर भी हमे उम्मीद थी कि बेटी को न्याय मिलेगा पर हम लड़ाई हार गए हमारी सारी उम्मीदें टूट गई | न्यायपालिका पर विश्वास करते हुए हमने 11 साल तक लड़ाई लड़ी लेकिन जो अपराधियों के साथ होना था वह हमारे साथ हुआ हम दर दर भटकते रहे लेकिन कोर्ट के इस फैसले से हमारा
देश की कानून व्यवस्था पर से भरोसा उठ गया हैं |