भोपाल : ई-टेंडर घोटाला कांड 2018 में हुआ था और इसकी शिकायत 2019 में दर्ज की गई थी इसे करीब - करीब 3 हज़ार करोड़ का घोटाला माना गया हैं | (पीएचई) के जल निगम के टेंडरों में गड़बड़ी से घोटाले का पता चला था ई-प्रोक्योंरमेंट पोर्टल में टेंम्परिंग कर करोड़ो रुपए के विभाग के तीन टेंडरों के रेट बदल दिए थे | मामले का पता चलते ही सरकार ने तुरंत ही तीनों टेंडर निरस्त कर दिए थे उसके बाद लोक निर्माण विभाग, मध्य प्रदेश रोड डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन, जल संसाधन विभाग और पीआईयू के टेंडरों में भी गड़बड़ी पाई गई थी | यह राज्य की राजनीति में भूचाल मचा देने वाला घोटाला था यह मामला 2018 में उस समय उजागर हुआ था जब तात्कालीन भाजपा सरकार चुनाव में जा रही थी | चुनाव में इस मामले ने हड़कंप मचा दिया था
सत्ता में आई | कांग्रेस सरकार ने इस मामले की गहराई से जांच करवाई लेकिन लंबी जांच के बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हुई | इस मामले के छह आरोपी सामने आए थे मध्य प्रदेश इलेक्ट्रानिक विकास निगम के ओएसडी नंद किशोर, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डायरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, एंटारेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन और भोपाल के व्यवसायी मनीष खरे आरोपी थे ईओडब्ल्यू ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था | लेकिन सरकार उनके खिलाफ कोई भी आरोप साबित करने में असमर्थ रही सरकार लोकायुक्त अदालत में यह साबित नहीं कर पाई कि टेंडर में छेड़छाड़ किसने की, इस कारण कोर्ट के स्पेशल जज संदीप कुमार श्रीवास्तव ने टेंडर घोटाले के सभी 6 आरोपियों को बरी कर दिया |