हर एक चौराहे पर उनको गढ़ दिया है पर कभी सोचा है कि उन महापुरुषों के विचारों को कितना आत्मसात किया है ?कितना समझा और सीखा है हमने उनके जीवन से उनकी लिखी आत्मकथा से?
वो कभी नहीं चाहते होगें की उनको यूँ पुतला बनाकर रख दिया जाए किसी चौराहे पर और ना ही ये कि उनकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर एक दिन के लिए माल्यार्पण कर दिया और बहुत बड़ी बड़ी बातें की जाए।
जितना मैंनें महावीर, बुद्ध ,विवेकानंद,महात्मा गांधी और ए पी जे अब्दुल कलाम के जीवन को पढ़ा है उससे मुझे जो समझ आया वो ये है कि वो चाहते थे कि हम महज बातें ना करके सच में भले छोटा ही सही पर राष्ट्रनिर्माण और व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करें। वे चाहते थे कि दिखावे की दुनिया से दूर शिक्षित समाज का निर्माण करें और उसके साथ ही विज्ञान का उपयोग करें विकास में ना कि अपनी स्वार्थ पूर्ति और लालच के लिए विज्ञान को जीवन संवारने की बजाय बर्बाद करने में उपयोग करें। वे ये भी चाहते थे कि प्रकृति ने जितना हमको दिया है हम उसको संभाले उसका उपयोग करें दोहन नहीं। वो अध्यात्म की बात करते थे आडम्बर और अंधविश्वास की नहीं और आज हम लोग फिर उन्हीं आडम्बरों में फँसते जा रहे है।
वे नहीं चाहते थे कि उन्हें पूजा जाये पर वे चाहते थे कि आने वाली पीढ़ीयाँ संभाले इस सुन्दर दुनिया को नाकि वो बन जाए राजनीति के हाथ की कठपुतली ।
वे चाहते थे कि उनके विचार बस दीवारों पर स्लोगन बनकर ना रह जाए वे चाहते थे कि ये विचार हर तबके तक पहुंचे ताकि ये दुनिया और सुन्दर बने।
वे कभी नहीं चाहते थे यूँ सरकारी दफ्तरों में उनकी तस्वीरों पर माला लगाकर उन्हें किसी दीवार पर खूँटी से टाँग दिया जाए वे चाहते थे कि इन सरकारी दफ्तरों में काम करने वाला व्यक्ति ईमानदारी और बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष होकर लोगों के लिए काम करें।
वे चाहते थे कि हम जितना अपनी उपलब्धि पर खुश होते है उतना ही अगर हमसे कोई गलती हो जाए तो हम उसे स्वीकार करने की हिम्मत कर सके।
बाकी महापुरुष पैदा नहीं होते वे बनते है अपने कर्मों से.....
हमारे देश में पैदा वर्धमान, सिद्धार्थ ,नरेन्द्र,मोहनदास और कलाम हुए थे महावीर, बुद्ध , विवेकानंद , महात्मा(बापू) और मिसाइल मैन बने वो अपने कर्मों से.....
(बस वहीं जितना मैं उनको पढ़कर समझ पाई।बाकी आप अपने विचारों के लिए स्वतंत्र है....)
तेरे बिन तेरे संग
राधे कृष्ण
#मीनू©