भोपाल :( नुजहत सुल्तान ) सीहोर का औद्दोगिक क्षेत्र 5 साल से इसी तरह खाली पड़ा हैं इस इलाक़े में कुल 138 प्लाट डेवलप किए गए लेकिन सिर्फ 80 प्लाट ही अलॉंट हो सके हैं, इनमें से भी काम तो गिने चुने में ही शुरू हुआ हैं | यहां अभी पथरीली जमीन और एक बड़े पार्किंग एरिया के साथ कुछ छोटे शेड यानि प्लांट नज़र आ रहे हैं | यहां बिजली, पानी, सड़क की सुविधा तो उपलब्ध हो गई हैं लेकिन उद्दोग कम नज़र आ रहे हैं | इनमें अभी पनीर फैक्टरी, पशु आहार संयंत्र, नमकीन कारख़ाना, मेडिकल इंस्टूमेंट आदि के काम चल रहे हैं यहां करोड़ो रुपया खर्च करने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला | इसी तरह दूसरे ओद्दोगिक क्षेत्र भी उद्दोग के अभाव में हैं | देवास के पास चापड़ा की तो बात ही निराली हैं करीब 25 साल पहले यहां उद्दोग की बात चली थी प्रस्ताव को ज़मीन पर उतरने में करीब 10 साल लगे, बिजली के खंभे और ट्रांसफार्मर भी हैं, लेकिन उद्दोग के नाम पर 15 साल में एकमात्र क्रशर लगा | वहीं उज्जैन में 443 हेक्टेयर के विक्रम उद्दोगपुरी इंडस्ट्रियल एरिया में 25 उद्दोगों को प्लॉंट अलॉंट किए जा चुके हैं | इनमें से अधिकतर में काम चालू हैं, दवाइयाँ, केमिकल और दूध के नामी प्लांट यहां आ रहे हैं, कई जिलों में उद्दोग क्षेत्रों के हालात जाने तो पीथमपुर और मंडीदीप के अलावा लगभग सभी जगह ज़मीन खाली है | 30 जिलों के इंडस्ट्रियल एरिया मे पाँच हज़ार से अधिक प्लॉंट डेवलप किए गए हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 2000 से ज़्यादा उद्दोग चालू नहीं हो सके, कहीं महंगी ज़मीन तो कहीं डेवलपमेंट चार्ज ज़्यादा हैं, कहीं बिजली तो कहीं पानी की दिक्कत हर इंडस्ट्रियल एरिया डेवलप नहीं होने का अलग कारण हैं उद्दोग मंत्रालय के सदस्य उल्लास वैद्द ने कहा कि जमीन देते समय कोई समय सीमा होनी चाहिए ताकि इंडस्ट्री शुरू न हो तो ज़मीन वापस कर दी जाए |
|