भोपाल ( नुजहत सुल्तान ) : मध्यप्रदेश में निवासरत उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, अन्य जगहो से आए हुए लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा इस मामले में करीब 8000 लोगो की जाति जांच के घेरे में हैं | सबसे अधिक 168 जाति प्रमाण पत्र लोक निर्माण विभाग के हैं | ऐसे करीब 600 मामले 15 साल से जांच के लिए छानबीन समिति के पास हैं जिसमें से अभी सिर्फ 3 मामलों का ही निपटारा हुआ हैं | बाकी अभी भी पेंडिंग मे पड़े हैं इसी से जुड़ा एक मामला पीडब्ल्यूडी मे असिस्टेंट इंजीनियर विलाश भूंगावकर का हैं | दरअसल साल 2007 में छानबीन समिति ने भूंगावकर का हलवा जाति का प्रमाण पत्र फर्जी मानते हुए रद्द कर दिया था | लेकिन 2008 में कैबिनेट ने उन्हें सामान्य जाति का मानते हुए सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से रिवर्ट करते हुए असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर नियुक्त कर लिया था | अभी भूंगावकर इस पद पर हैं लेकिन पुलिस ने दो कदम आगे बढ़ते हुए अभी 8 दिन पहले छानबीन समिति के फैसले पर भूंगावकर को क्लीन चिट दी और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मामले की क्लोज़र रिपोर्ट लगा दी | इस मामले में जांच के बाद दोबारा कोर्ट में चालान प्रस्तुत करेंगे | पहले की जांच में जो भी कमी रही होगी उसे भी देखेंगे | मप्र में अधिकतर मामलों में जाति आरक्षण पर संदेह की एक बड़ी वजह हैं आरक्षण नियमों में एक प्रावधान हैं कि 1950 के अभिलेखों में जो जातियां मप्र में अनुसूचित जनजाति और जनजाति में पाई गईं हैं उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा, इसके बाद कोई भी व्यक्ति मप्र में आकर निवास करता हैं तो उसे अजा-जजा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा | सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया था हलवा जनजाति का प्रमाण पत्र दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में अपने एक फैसले में कहा था कि ऐसे कोस्टा लोग, जिन्होने मिलिंद प्रकरण में साल 2000 के पहले का हलवा जनजाति का प्रमाण पत्र ले रखा हैं, उन्हें सरंक्षण मिलेगा 12 साल बाद कोर्ट में ये मामला फिर पहुंचा तो बड़ी बेंच ने हलवा प्रमाण पत्र वाली सभी तरह की कोस्टा जनजाति के लिए इस सुविधा को खत्म कर दिया था इसी मामले में पीडब्ल्यूडी के दो और इंजीनियर दीपक असाई और आनंद लिखार की जाति की जांच समिति में चल रही हैं |
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