भोपाल :( नुजहत सुल्तान ) सड़क निर्माण को लेकर क्वालिटी पर सवाल उठ रहे हैं दरअसल, घटिया डामर और खराब इमल्शन के उपयोग से सड़कें जल्दी उखड़ जाती हैं, सड़कों पर डामर से पहले इमल्शन का छिड़काव होता हैं, एक तो घटिया क्वालिटी के इमल्शन का उपयोग ऊपर से उसमें भी पानी मिला दिया जाता हैं | अच्छी क्वालिटी का इमल्शन 60 से 65 रु. प्रति लीटर मिलता हैं, जो इमल्शन सड़कों के लिए उपयोग किया जा रहा हैं वह मात्र 15 से 20 रु. प्रति लीटर मिल जाता हैं | इसी तरह डामर भी सस्ते के चक्कर में घटिया क्वालिटी का उपयोग किया जा रहा हैं जो कि 50 डिग्री से भी कम में पिघलने लगता हैं | डामरीकरण के तुरंत बाद ट्रैफिक शुरू कर दिया जाता हैं उससे भी सड़के जल्दी उखड़ने लगती हैं, बरसात के मौसम मे शहर की 500 किलोमीटर से ज़्यादा सड़कों पर गड्डे हो गए थे, सीजन खत्म होने के बाद दो माह में इन सड़कों को ठीक किया गया था, इन सड़कों का काम पूरा हुए अभी चार माह भी नहीं हुए हैं और यह सड़कें फिर उखड़ने लगीं | बिट्टन मार्केट से सुभाष एक्सीलेंस स्कूल और शाहपुरा सी सेक्टर से बावड़िया कला जाने वाली सड़कों में जगह-जगह डामर की परत उखड़ने लगी हैं | दूसरी सड़कों पर भी जहां पेंचवर्क हुआ वह खराब होने लगा हैं, बरसात से पहले यह सड़कें खराब हो जाएंगी | हर तीन साल में डामरीकरण का नियम हैं इसका फायदा उठाकर सड़कों को ठीक करने के नाम पर परत पर परत बिछा दी जाती हैं | नतीजतन सड़कें फुटपाथ के बराबर आ जाती हैं, शहर मे 85% सड़कों के किनारे ड्रेनेज नहीं हैं जिस कारण पानी सड़कों पर ठहर जाता हैं | कई जगह सड़कों का डामर उखड़ गया हैं आर अब तो गिट्टी भी उखड़ने लगी हैं जिस कारण दो पहिया वाहन चालक फिसल कर गिर रहे हैं | अशोका गार्डन से प्लेटफार्म नंबर 1 की निर्माणाधीन सड़क में पानी निकासी की जगह नहीं हैं जहां सड़क बन गई वहां से उखड़ने लगी | इस मामले में जब स्ट्रक्चर इंजीनियर शैलेंद्र बागरे ने कहा कि सबसे अच्छा तरीका हैं सीमेंट कांक्रीट की सड़कें बनाई जानी चाहिए यह महंगी ज़रूर हैं लेकिन अधिक टिकाऊ हैं |
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