भोपाल :( नुजहत सुल्तान) बेमौसम बारिश ने शहर में सड़क निर्माण और उसके मेंटेनेंस में बरती जाने वाली कमियों को उजागर कर दिया है गर्मी का मौसम आते ही पीडब्ल्यूडी ने अपनी सड़कों के डामरीकरण और रिन्युअल आदि के काम शुरू किए | नगर-निगम ने भी कुछ जगहों पर सड़कों का निर्माण शुरू किया लेकिन बारिश होते ही इनकी हक़ीक़त सामने आ गई | मंत्रियों और अफसरों की कॉलोनी 74 बंगला इलाक़े में 1 करोड़ रु. की लागत से जो सड़क बनाई गई थी, बारिश होते ही सड़क की सरफेस उखड़ने लगी | पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव के बंगले के सामने उखड़ी सड़क के मलबे का ढेर लगा हुआ है | इतना ही नही बल्कि डिपो चौराहा के पास करीब एक महीना पहले ही सड़क निर्माण हुआ था, लेकिन उस सड़क का बेस भी उखड़ने लगा है | जमीनी हक़ीक़त ये है कि शहरभर में एक भी सड़क ऐसी नहीं बची जो चकाचक हो | पिछले दो साल से नगर-निगम की खुदाई के कारण सड़कों का रेस्टोरेशन एक बड़ा मुद्दा बना हुआ था, रेस्टोरेशन और मेंटेनेंस दोनों राशि को जोड़ लिया जाए तो शहर में सड़कों पर पिछले साल 100 करोड़ रुपए खर्च हुए थे |भारत माता चौराहे के पास सड़क का बेस ही उखड़ गया है, यह सड़क एक महीने पहले ही बनी थी | शाहपुरा सी सेक्टर से कलियासोत ब्रिज होते हुए बावड़िया कला को जोड़ने वाली सड़क की सरफेस भी खराब हो गई | इसी तरह शहर के अन्य इलाकों की सड़कें भी बारिश के कारण खराब हो गई है | सड़क उखड़ने का मुख्य कारण घटिया क्वालिटी का डामर इस्तेमाल करना हो सकता है भोपाल में इस्तेमाल हो रहा डामर स्टैंडर्ड से 20 से 25% सस्ता है | सड़कों के रिन्युअल के समय बिटुमिन कांक्रीट (बीसी) कोट से पहले सड़क की सरफेस को साफ करना पड़ता है जल्दी काम करने के चक्कर में ठीक से सफाई नही की जाती और बीसी कर दिया जाता है | इसके अलावा पीडब्ल्यूडी में एक मेंटेनेंस गैंग हुआ करती थी, और एक किमी के हिस्से में 3 से 4 लेबर लगे रहते थे, जो छोटे - मोटे गड्ढो और दूसरी गड़बड़ियों को सुधारते थे, यह व्यवस्था खत्म हो गई है और विभाग अब पूरी तरह कांट्रेक्टर पर निर्भर हो गया हैं |
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