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महाकाल में सप्तऋषियों की मूर्तियों के अंदर न स्टील का बेस और न सरियों का जाल अंदर से खोखली होने के कारण हल्की हवा बारिश से टूट गईं |

उज्जैन : महाकाल में स्थापित सप्तऋषियों की मूर्तियां हल्की सी हवा में उड़ गईं दरअसल इनके टूट जाने का मुख्य कारण सामने आ चुका है, जिन मूर्तियों को निहारने आम लोग देश दुनिया से चले आ रहे हैं, वे प्लास्टिक की निकली | वो भी अंदर से खोखली इतना ही नहीं जिस बेस पर मूर्तियां लगानी थी, वह भी बहुत कमजोर था अंदर घटिया स्टील लगाया गया और सामान्य रूप से ही किसी भी स्ट्रक्चर को मजबूती देने के लिए अंदर लोहे के सरियों का जाल बनाया जाता है वह भी गायब था | मूर्तियों का बेस कमजोर होने के साथ-साथ नीचे इतनी जगह थी कि आसानी से हवा पानी अंदर जा सकता था, मूर्तियां इस तरह की नहीं थी कि वे 30 से 50 किमी घंटे की स्पीड से चलने वाली हवा झेल सकें | हैरत की बात ये है कि इतना सब कुछ सामने आने के बाद भी अफसर कह रहे हैं कि जांच की कोई ज़रूरत नहीं आँधी में उड़ी हैं, हम फिर बनवा लेंगे उसी ठेकेदार से यानि दोबारा फिर वही गलती दोहराई जाएगी एक और बात कि लोकायुक्त में शिकायत हुई इससे भी पहले टूरिज़्म के अफसरों ने मूर्तियों के खोखलेपन पर सवाल उठाए थे | लेकिन तत्कालीन अफसरों ने प्रधानमंत्री को बुलाने और लोकार्पण की जल्दी में कुछ सुना ही नहीं | ऐसा नहीं कि अफसरों को आशंका नहीं थी, उन्हें तो सब कुछ पता ही था, पहला कारण यह कि जिस कंपनी को यह काम दिया उसे कहा गया कि 10 साल की गारंटी दीजिए | दूसरा जब विधानसभा में प्लास्टिक (एफआरपी) पर सवाल उठे तो जवाब में कहा गया कि सबकुछ अनुबंध के अनुसार है, जाहिर है अनुबंध तो प्लास्टिक की मूर्तियों का ही रहा होगा | पैसे जो बचाने थे चूंकि, पत्थर की मूर्तियां  बनाने के लिए बहुत ज़्यादा पैसे और समय लगता है और इतनी सुंदर भी नही बनती लोकार्पण की जल्दी में इतनी बड़ी लापरवाही समझ से परे है | अब इन टूटी हुई मूर्तियों को बदलवाने का प्लान भी तैयार किया जा रहा है | यहाँ लगभग 155 मूर्तियां एफआरपी की लगी हुई हैं, जिन्हें पत्थर में बदलने पर बात हुई मैंने अपनी टीम के साथ सभी का परीक्षण भी किया |जिसमें पाया कि 60 से ज़्यादा मूर्तियां बदली जा सकती हैं, जबकि 90 मूर्तियां ऐसी हैं, जिन्हें पत्थर में नहीं बदला जा सकता उसका कारण यह है कि एफआरपी की मूर्तियों में हाथ और शरीर के अंग बाहर निकाले जा सकते हैं, जबकि पत्थर की मूर्तियों में ये संभव नहीं |

 

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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