भोपाल : 19/6/2023 : आदिवासी लोगों में सिकलसेल एनीमिया जैसी लाइलाज बीमारी अधिक देखने को मिलती है, भारत में आदिवासी आबादी वाले 17 राज्यों और मप्र के 20 जिलों के 89 ब्लॉक इस बीमारी से प्रभावित हैं | ये आनुवांशिक रोग है जो माता-पिता से बच्चों में ट्रांसफर होता है | इससे ग्रस्त होने वाले व्यक्ति में हमेशा खून की कमी के कारण कमजोरी रहती है | 40 से 45 वर्ष के बीच मौत हो जाती है भारत में हर साल सिकलसेल एनीमिया वाले लगभग 44 हज़ार बच्चे पैदा होते हैं | 1984 में पहली बार आईसीएमआर ने मप्र के नर्मदा किनारे के जिलों को सिकलसेल प्रभावित रेड ज़ोन बताया था मप्र अकेला राज्य है जो नवंबर 2021 में पायलेट फेज में दो जिलों आलीराजपुर और झाबुआ में पौने दस लाख आदिवासी बच्चों और गर्भवतियों की टेस्टिंग कर इस बीमारी की स्क्रीनिंग का एक मॉडल विकसित कर चुका है | यही मॉडल अब पूरे देश में अमल में लाया जाएगा | दोनों जिलों में 18 साल तक के बच्चे और गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग के बाद करीब 30 हज़ार सिकलसेल पॉज़िटिव मरीज मिले हैं | मप्र में दूसरे चरण की शुरुआत मई 2022 में की गई, जिसमें बाकी के 18 आदिवासी जिलों में टेस्टिंग शुरू की गई | इससे निपटने के लिए हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन का भी गठन किया है | इस बीमारी का डेटाबेस बनाने के लिए मप्र सरकार द्वारा बनाए गए रजिस्ट्रेशन पोर्टल को भी केंद्र ने एडॉप्ट कर लिया है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 27 जून को शहडोल की धरती से सिकलसेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 लॉंन्च करेंगे | इस मिशन के तहत देशभर में छह माह के बच्चे से लेकर 40 साल तक के हर आदिवासी युवक-युवती की स्क्रीनिंग कर सिकिलसेल एनीमिया रोगियों और वाहकों की पहचान की जाएगी | ताकि इलाज के साथ ही अगली पीढ़ी में इस बीमारी को पहुँचने से रोका जा सके | सिकलसेल की टेस्टिंग के लिए अब पॉइंट ऑफ केयर टेस्टिंग तकनीक अपनाई जाएगी | अभी तक एचपीसीएल हाई- परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी तकनीक उपयोग की जा रही थी | जिसमें पॉज़िटिव टेस्टिंग के बाद करियर और पीड़ित की पहचान के लिए दोबारा टेस्टिंग करनी पड़ती थी |
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