नई दिल्ली : 16/12/2023 : बीमा कंपनियों द्वारा आखिरी समय में मेडिक्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है, बीमा कंपनियां प्रचलित मान्यताओं के आधार पर क्लेम रिजेक्ट कर रही हैं | इसका मुख्य कारण है कि देश में बीमा और हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर के लिए निश्चित कानून नहीं है | कंपनी प्रमियम अपनी मर्ज़ी से तय करती हैं | अस्पतालों में एक ही बीमारी के इलाज के दाम अलग-अलग हैं, कोविड के बाद तो बीमा कंपनियां अधिक मुश्किलें खड़ी कर रही हैं | बीते एक साल में 80% केस बिना ठोस कारण बताए रिजेक्ट कर दिए गए | अधिकतर केसों में कारण किसी लत को छिपाना बताया गया | 20% केस में ही ग्राहकों को न्याय मिल सका है | जब ग्राहक बीमा लोकपाल में इसे चुनौती देते हैं तो उन्हें 18-18 पेज की नियम शर्तें थमा दी जाती हैं, कई मामलों में कंपनियां क्लेम के समय डॉक्टरों को प्रेफर्ड नेटवर्क से बाहर करने की धमकी देकर बीमारी को किसी लत से जोड़ने का भी दबाव बना चुकी है | ऐसी स्थिति में ग्राहक सीधा उपभोक्ता आयोग या हाई कोर्ट पहुँच रहे हैं | हाल ही में लिवर सिरोसिस का इलाज कराने इंदौर से आए सुशील का मेडिकल क्लेम बीमा कंपनी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अधिक शराब पीने के कारण आपको ये बीमारी हुई है और आपने पॉलिसी लेते समय कंपनी से शराब पीने वाली बात छिपाई थी | जबकि इस बीमारी के कई और कारण भी हो सकते हैं | आखिर में सुशील को अस्पताल का 2 लाख 25 हज़ार का पूरा बिल भुगतना ही पड़ा | दरअसल, कंपनियों को कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है जो कंपनियां नहीं करती और ग्राहकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है | पॉलिसी देने से पहले सभी ज़रूरी स्वास्थ्य जाँचे करानी चाहिए ताकि कोई बीमारी हो या लत हो तो पता चल जाए | हेल्थ पॉलिसी के नवीनीकरण के समय भी जांच होनी चाहिए | लोन और एडवांस के समय बैंकों द्वारा दी जाने वाली पॉलिसियों की नियम और शर्तों के बारे में ग्राहक को बराबर जानकारी दी जानी चाहिए | अगर थर्ड पार्टी एडमिन (टीपीए) कोई क्लेम रिजेक्ट कर दे या क्लेम राशि में कटौती करे तो इसकी जांच बीमा कंपनी को करनी चाहिए |
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