भोपाल : 18/01/2024 : मप्र में निजी ऑपरेटरों और भाजपा, कांग्रेस नेताओं की बसें इतनी बढ़ गई हैं कि परिवहन निगम उबर ही नहीं पाया, मप्र में 19 साल पहले सड़क परिवहन निगम को 171 रूट मिले थे, लेकिन अब इनमें निजी ऑपरेटर्स का कब्जा है | दूसरे राज्यों में भी परिवहन निगम घाटे में हैं | पर वहाँ सरकारें इनका संचालन कर रही हैं, शुरुआत में यहाँ 4 हज़ार से अधिक बसों के संचालन के लिए 26 हज़ार कर्मचारी यानी एक बस में 5 कर्मचारी, पर 1999 में 1600 बसों पर 19 हज़ार कर्मचारी हो गए | यानी एक बस पर 10 या 12 कर्मचारी | यही नहीं राजनीतिक नियुक्तियों और गठजोड़ के कारण 2 हज़ार और भर्तियां रिजर्व कोटे में की गई | ऐसा लगता है जैसे जानबूझकर परिवहन निगम को घाटे में डुबोया गया जिससे वह अपने आप बंद हो जाए | परिवहन माफिया के दबाव में सरकार ने बसें घटाई कर्मचारी बढ़ाए इससे वेतन मिलना तक बंद हो गया है | नागपुर से जो निजी बसें आती हैं उन्हें मप्र में परेशान किया जाता है, बार्डर पर निजी लोग वसूली करते हैं | टूरिस्ट बसों तक को नहीं छोड़ते, पुलिस और आरटीओ को हर ट्रिप पर 2 हज़ार से 4 हज़ार तक भरना पड़ता है | परिवहन निगम को मिटाने में नेता और अफसरों की भूमिका रही, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों के समय रहे चेयरमैनों के कार्यकाल में अनियमितताएं हुईं | बस, डीजल, टायर, पार्ट्स तक की खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार हुआ | भर्तियों में भी गड़बड़ी कर सड़क परिवहन निगम को बर्बाद कर दिया गया |
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