भोपाल : 19/01/2024 :(नुजहत सुल्तान ) मप्र में सड़क परिवहन निगम में केंद्र सरकार से अधिक राज्य सरकार का पैसा लगा है, केंद्र ने आखिरी बार करीब 50 लाख रु. दिए थे, और राज्य ने आखिरी बार 5 करोड़ से अधिक पैसा लगाया था | इसके बाद पैसा नहीं मिलने के कारण बसें नहीं खरीदी जा सकीं और इनका दायरा घटता गया | मैक्सीकैब को 50 किमी तक चलाने के परमिट दे दिए गए | जिससे बसों में सवारियां कम होने लगी इधर बसों की संख्या भी कम हो गई और एक-एक बस में 12 कर्मचारी हो गए | कैबिनेट बैठक में बताया गया कि समय समय पर डीजल की कीमतें बढ़ी, लेकिन मप्र में किराया नहीं बढ़ाया गया | इसके साथ ही नि:शुल्क और रियायती पास के कारण भी निगम को भारी नुकसान हुआ जिससे निगम बदहाल हो गया | मप्र राज्य परिवहन निगम देश का पहला निगम था, इसे बंद करने की कहानी की शुरुआत कांग्रेस के शासन में यानी 90 के दशक से तभी हो चुकी थी जब सरकार ने नई बसों की खरीदी और अन्य खर्चों से हाथ खींच लिया था | 2002 तक यह पूरी तरह खस्ताहाल हो चुका है | सरकारी बसों पर नेतागिरी के चलते सरकार ने इसे बंद करने को प्राथमिकता दी, जबकि सरकार के पास निगम को चलाने के कम खर्च वाले दो विकल्प और थे जिसमें 1400 रु. खर्च कर निगम को चलाया जा सकता था, लेकिन सरकार ने 1600 करोड़ रु. खर्च कर इस पर ताला लगाने के फैसले पर मुहर लगा दी | सड़क परिवहन निगम को बंद करने से पहले कैबिनेट को विभाग ने बताया था कि उसे हर माह 5 करोड़ का नुकसान हो रहा है | बसों को 6 लाख किमी चलाने का लक्ष्य था, जबकि ये सिर्फ 2 लाख किमी रोजाना ही चल रही थीं | अवैध बसें बढ़ने की बात विभाग ने खुद स्वीकारी थी |
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