भोपाल : 19/01/2024 :( सैफुद्दीन सैफी) राजधानी के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) शहर का एकमात्र ऐसा कार्यालय है जहां दोपहर 12 बजे तक न अफसर आते हैं और न ही बाबू कार्यालय एजेंट के भरोसे चल रहा है | पूरी व्यवस्था एजेंट देखते हैं, अफसरों की इस लापरवाही का खामियाजा आरटीओ में आने वाले दूर दराज के लोगों को भुगतना पड़ रहा है | सबसे ज़्यादा उन लोगों को परेशान होना पड़ता है जो लायसेंस के लिए फोटो खिंचवाने शहर के दूसरे कोने से आते हैं | स्टाफ की गैरमौजूदगी में ये एजेंट ही आवेदकों से डील करते हैं, इस दफ्तर में एजेंट्स की इतनी ज़्यादा चलती है कि वे खुलेआम आवेदकों से 800 से दो हज़ार रु. लेकर बाबू अफसरों के हस्ताक्षर बिना ही सिर्फ 15 मिनट में लायसेंस के लिए फोटो खिंचवा देते हैं | इतना ही नहीं जो भी आवेदक कार्यालय में आता है एजेंट उस पर टूट पड़ते हैं ताकि कुछ कमाई उनकी भी हो जाए | हद तो यह है कि अफसरों के आने जाने वाले रस्तों पर कार्यालय में लगे कैमरे भी फर्श की तरफ हैं ताकि अफसर किस समय आते हैं इसकी जानकारी न मिल पाए || उनसे मिलने कौन-कौन आता है यह सब भी कैमरों में रिकॉर्ड नहीं होता है | वहीं आरटीओ का रिकॉर्ड रूम भी पूरी तरह लावारिस पड़ा है जिसमें कोई भी घुसकर आसानी से कोई भी फाइल उठाकर ले जा सकता है | रिकॉर्ड रूम के अंदर दर्जनों फाइलें फर्श पर बिखरी पड़ी रहती हैं | अफसरों की इस लेटलतीफी के चलते एजेंट्स अपनी जेब गर्म करने में लगे रहते हैं लेकिन यहाँ कोई सुध लेने वाला नहीं है |
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