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अभद्र भाषा, एवं धार्मिक रंगों में रंग गई है राजनीति,

मई आने के बाद राजनैतिक मौसम गर्म होने लगा है हवाएं अब लू में बदल रही हैं ठीक इसी तरह भारत का सियासी माहौल भी पूरी तरह से गर्म हो गया है दो बड़े राजनीतिक दल अखाड़े में अपने आप को एक दूसरे से मजबूत और सर्वश्रेष्ठ बताने की होड़ में लगे हुए हैं

पल पल राजनीति अपना एक अलग रंग धारण करती हुई नज़र आ रही है दोनो तरफ से कटाक्ष भरे तीर, आरोप प्रत्यारोप की वर्षा धुंआधार हो रही है,

ये तो तय है की दोनो दलों के कुछ उम्मीदवार जीतेंगे कुछ हारेंगे किसी की जमानत जब्त होगी कोई एक पार्टी जीत कर अपनी सरकार बनाएगी 

 दोनों दलों के राजनेता जो उम्मीदवार हैं वो जीत की लालसा को संजोए जनता से सीधा संवाद करने उनके शहर गावों खेत खलिहान सभी जगह हाथ जोड़े और चेहरे पे एक मुस्कान लिए लोगों के साथ नजर आ रहें हैं 

सोशल मीडिया के माध्यम से भी कभी लाइव आकर 'x पे ट्वीट कर इंस्टाग्राम फेसबुक पर पोस्ट कर जनता तक अपनी बात अपने वादे अपना आश्वाशन पहुंचा रहें हैं जनता से सीधा संपर्क साधने में ये बहुत ही उपयोगी है

क्योंकि नेता की बातें ही दम रखती हैं और भाषा राजनीति का सबसे मुख्य अंग है, राजनेता अपनी बातों के जरिए ही जनता का दिल जीतती है उनके समक्ष अपनी पार्टी का गुणगान करती है,आश्वाशन देती है 

कटु वाणी में अपने विपक्षी दलों की आलोचना करती है आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं 

लेकिन आज की इस बदलती राजनीति मे सभी दलों के उम्मीदवार, नेतागण, सांसद और वो जनता जो पार्टी के समर्थक हैं एक दूसरे पे आरोप प्रत्यारोप लगाने में इतने संलिप्त हो गए की इन्होंने अपनी मान मर्यादा और प्रतिष्ठा का तनिक भी ख्याल न रख सके और इतने निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग किया की लोगों का मस्तिष्क आने वाले कई राजनीतिक दौर तक याद रखेगा  

राजनीति में ओछी भाषा का प्रयोग कब से होता चला आ रहा है ये जानना इतना आवश्यक नहीं है चिंता का विषय ये है के अब सारे ही एक ही भाषा का प्रयोग कर रहे हैं और भाषा का स्तर गिरता चला जा रहा है चाहे वो नेतागण हों या आम जनता सभी एक दूसरे से सवाल न कर आलोचना करते हुए निम्न स्तर की भाषा में संबोधित करते हुए मिलेंगे

नेतागण अपने पद की गरिमा को भी भुलाए बैठे हैं 

चाहे माननीय प्रधानमंत्री हों या कोइ सांसद सबको एक ही लाठी से हांकने का काम हो रहा है और साथ ही झूठ परोसा जा रहा है

ना आम जनता किसी पद की गरिमा का मान रख रही है और ना नेतागण कुछ सोच रहे की हमारी भाषा हमारी मर्यादा से कितनी दूर निकल गई है। महिला सांसद भी निम्न स्तर की भाषा का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं वो महिला हो कर दूसरी महिला की आलोचना में ओछी भाषा का ही प्रयोग कर रही हैं 

संस्कार, महिला सम्मान, बेटी बचाओ की बातें करने वाले सारी सीमाएं लांघ चुके हैं

 जीत जाएं या हार जाएं लेकिन वो नेतागण वो सांसद वो समर्थक अपनी दोहरी मानसिकता का प्रमाण भली भांति दे चुके हैं ये उन लोगों की दृष्टि में कभी ना उठ सकेंगे जो  निष्पक्ष हो कर देश हित के लिए सोचते है और केवल विचारधारा के समर्थक हैं 

सोशल मीडिया के पोस्ट और जनता के कॉमेंट आप बच्चों के सामने ना पढ़ें

केवल झूठ,प्रोपगंडा, अभद्र भाषा, से भरे पड़े हैं

विकास शिक्षा महंगाई इन सबका अब राजनीति से कोई लेना देना नही रहा

अभद्र भाषा की शैली एवं धार्मिक रंगों में रंग गई है राजनीति, एक दूसरे के विशेष धर्म को निशाना बना कर उन्हें हर तरह से नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है

कोई विकासशील मुद्दा नहीं है इस बार हो रहे चुनाव में

लोकतंत्र और देश की छवि मैली हो रही है

अभद्र भाषा, धर्म की राजनीति में देश की चमक धूमिल पड़ रही है

सादिया खान

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