भोपाल : 24/08/2024 :( नुजहत सुल्तान) महज अच्छी बिल्डिंग और उनमें सजी मशीनें ही होना जरूरी नहीं बल्कि उनका सही तरीके से उपयोग होना जरूरी है | लेकिन शहर के अस्पतालों में इन मशीनों को चलाने के लिए ऑपरेटर ही नहीं हैं, जिन अस्पतालों में डिलीवरी के लिए महिलाएं पहुँचती हैं वह चाहे सरकारी ही क्यों न हो लेकिन उनके लिए जान का खतरा बना रहता है क्योंकि इन अस्पतालों में डॉक्टर नहीं रहते और नर्सिंग स्टाफ के भरोसे प्रसूताओं को छोड़ दिया जाता है जिससे शिशु और मां दोनों के लिए खतरा मंडराता रहता है | केवल मप्र में ही पिछले 10 साल में बच्चे को जन्म देत समय 17 हज़ार के करीब मौतें हुई हैं, इनमें से कई मौतें सरकारी अस्पताल में भी हुई हैं | इसके अलावा बड़े जिलों में सबसे अधिक मौतें हो रही हैं | छोटे सरकारी अस्पतालों में न डॉक्टर हैं, और न मशीने प्रसव नर्सिंग स्टाफ के भरोसे है | सीएचसी, उप स्वास्थ्य केंद्र और पीएचसी में तो सीजेरियन डिलीवरी की व्यवस्था ही नहीं है | इन अस्पतालों से प्रसूताओं को गंभीर स्थिति होने पर जिला या मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है, लेकिन अगर एंबुलेंस मिलने में देरी हो जाए या बड़े अस्पतालों में भीड़ के कारण गर्भवतियों को समय पर इलाज न मिलने से भी उन्हें जान गवानी पड़ती है | अगर इन छोटे अस्पतालों में सीजेरियन व्यवस्था और डॉक्टरों की कमी पूरी कर दी जाए तो कई प्रसूताओं की जान बच सकती है | गांव ब्लॉक तो छोड़िए कम से कम जिला स्तरों पर तो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहां गर्भवती महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें |
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