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खबर जरा हट कर : केंद्र के मुक़ाबले राज्य स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, पर अपने बजट का पूरा पैसा खर्च नहीं कर पाए |
नई दिल्ली : 2022 -23 में लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्च के लिए केंद्र ने 7.5 लाख करोड़ रुपए रखे थे | वहीं राज्यों ने 6.92 लाख करोड़ रुपए का बजट तय किया था | केंद्र अपने बजट का 27.8% खर्च कर चुकी हैं जबकि राज्य सिर्फ 14.7% ही खर्च कर पाई हैं | वहीं अप्रैल से जुलाई के बीच 100 करोड़ या उससे पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखने वाली सरकारी कंपनिया अपने बजट का 28% खर्च कर चुकी हैं, इनका कुल बजट 6.62 लाख करोड़ रुपए हैं और यह 1.84 लाख करोड़ रुपए खर्च कर चुकी हैं इसका नतीजा यह रहा कि निजी क्षेत्र से अ
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राजनीति : नरोत्तम की आक्रामकता मुख्यमंत्री शिवराज की सियासी जमीन को कमजोर करना तो नही
(सैफुद्दीन सैफी)
मध्यप्रदेश के अभी तक की सरकारो मे कोई मायकालाल ग्रहमंत्री आज तक नही बना जिसने इतनी आक्रामक छवि बनाई हो जितनी आज के ग्रहमंत्री पंडित नरोत्तम मिश्रा ने बना ली है। पूर्ववर्ती काँग्रेस की सरकारे रही हो या सकलेचा और पटवा जी की भाजपा सरकारे या शिवराज की विगत तीन कार्यकाल की सरकारे इनमे ऐसे भी ग्रहमंत्री रहे है जिन्हे अपनी मर्जी का अपने जिले मे एसपी तक की पदस्थापना करवाने मे पसीना आ जाता था कई बार तो ये खबरे भी सुनने को मिलती थी पूर्ववर्ती सरकारो मे रहे ग्रहमंत्रियों के बारे मे
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खास खबरे : परिवहन मंत्री के ओएसडी पर सामाजिक कार्यकर्ता को धमकाने का मामला दर्ज।
भोपाल। परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत के विशेष सहायक (ओएसडी) तथा डिप्टी सेकेटरी परिवहन विभाग कमल नागर ने सामाजिक कार्यकर्ता
भुवनेश्वर मिश्रा को जान से मारने की धमकी दी, जिस पर जिला अदालत ने कार्यवाही करते हुए मामला दर्ज किया है। भुवनेश्वर मिश्रा ने नागर के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी शिकायत लोकयुक्त तथा अधिकारियों को की थी, जिसके बाद नागर ने मिश्रा को परिवहन मंत्री के निज निवास के टेलीफोन से फोन कर जान से मारने की धमकी दी थी। मिश्रा ने थाना टीटी नगर तथा एसपी भोपाल को इस बारे मे आवेदन दिया
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आर्टिकल |
क्षेत्रीय प्रतियों को छोटा न समझे नेशनल पार्टियां . जो लोग छोटी पार्टियों को 'वोट काटने' वाला कहते हैं, ये जान लें कि ये नासमझी की बात है. मध्य भारत में गोंगपा, जयस और गोंडवाना मुक्ति सेना जैसी पार्टियां हैं, जिनके एमएलए नहीं हैं, वह चुनाव नहीं जीततीं, मगर उनके पास कार्यकर्त्ता हैं, कैडर है, किसी भी ज़्यादती या कस्टडी में मौत के बाद, ये लोग जानते हैं कि डेमो करना है, मेमो देना है, प्रशासन से विक्टिम के लिए मदद लेना है. और ये सब करते हैं,
. क्या फायदा उस पार्टी के एमएलए से जो कभी आपके लिए न थाने पर समर्थक भेजता है, न उसके कार्यकर्त्ता या यूथ विंग किसी दल या परिषद् के सामने खड़े होने की हिम्मत भी रखते हों. सियासत दरअसल पावर गेम और और स्ट्रीट पावर, लोग साथ होना चाहिए, सिर्फ जीत या हार नहीं है.
. ऐसी ऐसी पार्टियां हैं जो कोई सीट नहीं जीततीं मगर पूरे राज्य में किसी की हिम्मत नहीं कि उनके वोटर्स या सपोर्टर्स के बारे में कोई इनजस्टिस हो जाए. ये बड़ा विविधताओं यानी डायवर्सिटी का देश है, जितनी ज़्यादा पार्टियां उतनी ज़्यादा आवाज़ें, उतना ज़्यादा ऑप्शन, डिमॉक्रेसी तभी मज़बूत होगी, जो लोग चाहते हैं कि सिर्फ भाजपा और कांग्रेस रह जाए वह दरअसल दसियों करोड़ लोगों को गुलाम और उनकी आवाज़ को हाशिये पर कर देना चाहते हैं.
. जीते चाहे न जीतो, हराओ, हरवाओ, हरवाने की भी ताक़त रखो और कुछ नहीं तो इतनी हैसियत रखो कि इंडिपेंडेंट... |
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कविताए |
गजल......
कैसे हम भूले, तुमको जब तुमसे ही प्यार है।
माना दूर है मुझसे, पर तेरा ही इन्तज़ार है।
आखों में सूरत तेरी, लगता है तू पास है।
अब तो मेरे सासो की, बस तू ही झंकार है।
ये मुमकिन कब है प्रीतम, दोनों का एक हो सफ़र।
साकी के पैमाने से, कब तुझको इन्कार है।
अब खूं मे है मेरे, दिलकश की मोहब्बत जुनूँ।
अहवाल अब ये मेरा, अब वो मेरे सरकार है।
तौबा तौबा है "झरना," तेरे ऐसे इश्क़ का,
उसको एहसास कब तेरा, कब तेरा इकरार है।
झरना माथुर
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जुग जुग जियों.......
नन्हीं कोशिश '
नन्ही बिटिया के नन्हे हाथ
कोशिश करती बार-बार
बहती नदिया भारी
क्या करुं ....कैसे करूं
कागज की नाव हमारी
नन्हीं परी की नन्हीं कोशिश
नन्हे पांव जमाये
गीली रेत मुष्टि में भरती
रेत फिसल ना जाये
पुरजोर कोशिश करती
सपनों की मानिंद बालू
नन्हें हाथों से ज्यूं ज्यूं सरकती
फिर सहेजती ,समेटती
झटपट नन्हें हाथों में
कुछ सीपियाँ बंद ,नन्हें शंख
बटोरती, खिलखिलाती
सुनहरी धूप सी वो
फिर फुदक - फुदक कर
अठखेलियाँ करती
जलपरी सी दिखती
आसमानी पानी में
यही तो है ..
नन्हीं सी बिटिया का
नन्हें सा बचपन,
प्यारा बचपन
न्यारा बचपन,
मनमोहक बचपन
आज मोहवश
अति व्याकुल हूं
सोचूं यही बार-बार
अनेक बार
कैसे और कब तक
क्या कर पायेगी अपनी सुरक्षा
हर पल, हर दिन, हर बार
अपने इर्द-गिर्द इन रेंगते
विषैले, पनियाले कीड़ों से
जो हमला बोलने को हैं आतुर
हर पल ,हर क्षण हर घड़ी
कब तलक सुरक्षा कर पायेगी
मेरी सुकोमल,
नन्हीं, बिटिया रानी !
*निरुपमा सिंह* |
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